बांका के जलमढ़ै का हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर बन गया है वेटनेस सेंटर, बड़ी आबादी स्वास्थ्य सुविधा से हो रही वंचित

 

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दो साल पहले बनकर तैयार हुआ है दो तल की इमारत,बेड और उपकरण फांक रहे धूल,

डॉक्टर का आवासीय भवन बना है भूत बंगला

बांका सदर प्रखंड के दोमुहान पंचायत अंतर्गत जलमड़ै गांव में दो साल पुर्व हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर तो बनकर उद्घाटन हो गया, लेकिन यह सेंटर अब तक गांववालों के लिए बस देखने और सुनने की चीज बनकर रह गई है। उद्घाटन के दिन बड़े साहब लोग आए,सफेद वर्दी में डॉक्टर और नर्स पहुंचे,फीता कटा, फूल माला चढ़ा,फोटो खिंचा और लड्डू नारियल बंटने के बाद अखबारों में खबर छप गई कि”ग्रामीणों को अब मिलेगी बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधा। लेकिन साहब, बाद में जो रह गया वह है;खाली कुर्सी,गेट पर झूलता ताला और धूल फांकता पंखा और आधुनिक गद्दे वाला फोल्डिंग बेड।जिसपर शायद ही कभी कोई मरीज इन दो सालों में सो पाया हो।

गांव के लोग कहते हैं कि यहां डॉक्टर का चेहरा देखना अब उतना ही कठिन है जितना कि गर्मी में ठंडी हवा। नर्स का हाल भी वही है—”ना आवे दिन,ना आवे रात, सेंटर के दरवाजा रहे सदा खामोशात।कभी महीने में एक बार शायद कोई कोरम पूरा करने के उद्देश्य से आते हैं तो कुछ घंटे में ही अपने फाइल का काम निपटा कर चले जाते हैं,जिससे यह ग्रामीणों को मालूम होता है कि किन्हीं की ड्यूटी तो सरकार ने यहां लगाई है। अस्पताल दो मंजिला है,जिसमें डॉक्टर और नर्स के लिए अलग से आवासीय क्वार्टर भी बना है,बिजली का कनेक्शन भी है लेकिन कोई रात में बल्ब जलाने वाला नाइट गार्ड तक नहीं है।

 

ग्रामीण इस आस में हैं कि कभी विभाग की नींद खुलेगी और यहां भी डॉक्टर की नियुक्ति की जायेगी।आसपास के आधे दर्जन गांवों के करीब 20 हजार आबादी में जब किसी बीमार आदमी को अगर इलाज चाहिए तो या तो झोला छाप डॉक्टर के पास जाओ,या फिर नदी पार करके 20 किलोमीटर दूर बांका सदर अस्पताल का चक्कर लगाओ।गांव के युवा मजाक में बोलते है कि”ई सेंटर का नाम ‘हेल्थ एंड वेलनेस’ ना, ‘हेल्थ एंड वेटनेस’ सेंटर होना चाहिए। काहे कि यहां लोग इलाज कम कराते हैं, इंतजार ज्यादा करते हैं।

अब हालत यह बनी है कि बुखार चढ़े तो झोला छाप डॉक्टर से इंजेक्शन लो,पेट दुखे तो नीम के रस से काम चलाओ, और अगर हालात बिगड़े तो बाइक या टोटो में बैठकर बांका पहुंचो। कई बार तो लोग कहते हैं कि “जितना टाइम अस्पताल पहुंचने में लगता है, उतना टाइम में तो बीमारी खुद ही उतर जाती है। गर्भवती महिलाओं की प्रसव पीड़ा होने पर वे अस्पताल जाने के बजाय आज भी गांव में ही दाई के द्वारा ही बच्चा जनने का काम करती हैं, गांव के अमीर लोग ही अस्पताल पहुंचते हैं या फिर जब किसी की सामान्य डिलीवरी संभव नहीं होती है तो आशा दीदी के सहारे अस्पताल तक का सफर किसी तरह तय करती हैं,ये वेदना ना केवल जलमड़ैय गांव की प्रसूता की है बल्कि सिंघाजोर,बैरीसाल,सिमराकोला, कहराबांध,दोमुहान के लोगों को भी सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रहना पड़ रहा है। वर्षों बाद जब अस्पताल का उद्घाटन हुआ तो लोगों में उम्मीद जगी कि अब झोला छाप डॉक्टरों से निजात मिलेगी लेकिन उनकी आशा निराशा में बदल गई।

नतीजतन ग्रामीणों का गुस्सा अब सातवें आसमान पर है। रविवार को सभी महिला पुरुष एकत्रित होकर पंचायत के मुखिया रेखा देवी से शिकायत करने पहुंच गए और कहने लगे कि अगर जल्दी डॉक्टर-नर्स की पोस्टिंग और ड्यूटी शुरू नहीं हुई, तो वे आंदोलन करेंगे और आगामी चुनाव में वोट का भी बहिष्कार करेंगे। इधर मुखिया रेखा देवी ने बताया कि सरकारी कागज में सेंटर पूरी तरह से चालू है,लेकिन जमीनी सच्चाई यही है कि यह सेंटर हाथी का दांत बनकर रह गया है “दिखावे के कुछ, खावे के कुछ। गांववाले अब ताना मारते हुए कहते हैं “सरकार के मंत्री मंगल पांडे के भाषण के हिसाब से स्वास्थ्य सुविधा सबके लिए है,लेकिन जलमड़ै गांव में यह सुविधा सिर्फ उद्घाटन वाले दिन ही थी। बांकी दिनों में मंगल जी के राज में गांव वालों का अमंगल होना जारी है।