📍 बांका | सावन विशेष |
बांका के जेठौर नाथ मंदिर में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, सावन और शिवरात्रि पर लगता है विशाल मेल
🔱 बाबा ज्येष्ठगौर नाथ मंदिर में सावन के पावन महीने में गूंज रहा ‘बोल बम’ का जयघोष
🔹 कर्ण की चिता, शिवलिंग और मां काली मंदिर का त्रिकोणीय संगम बना श्रद्धा का केंद्र
🔹 अंग क्षेत्र के सबसे प्राचीन शिवलिंगों में शामिल, 1400 साल पुराना इतिहास
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🌿 धार्मिक आस्था का केंद्र बना जेठौर नाथ धाम
बांका जिला मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर, चांदन नदी के किनारे स्थित बाबा ज्येष्ठगौर नाथ महादेव मंदिर इन दिनों शिवभक्तों से गुलजार है। यह पवित्र स्थल अमरपुर से मात्र 8 किलोमीटर दूर, जेठौर पहाड़ की तलहटी में स्थित है। सावन महीने में यहां डाक बमों और कांवड़ियों की भीड़ उमड़ रही है।
यह मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि इतिहास और पुरातत्व की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
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🔍 प्राचीनता और मान्यता
विशेष बात यह है कि यहां स्थित एकमुखी शिवलिंग को ही ज्येष्ठगौर नाथ कहा जाता है। यह शिवलिंग मंदिर के गर्भगृह से उत्तर दिशा में लक्ष्मीनारायण मंदिर परिसर में स्थित है।
पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार, यह शिवलिंग सदियों पुराना है। डीएन सिंह महाविद्यालय, रजौन के प्राचीन इतिहास विभाग के सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष डॉ. प्रताप नारायण सिंह और प्रभारी प्राचार्य डॉ. जीवन प्रसाद सिंह ने बताया कि यह शिवलिंग हर्षवर्धन के समकालीन शासक शशांक गौर द्वारा स्थापित 108 शिवलिंगों में से एक है।
अंग दशाष्टक श्लोक में भी इन 108 शिवलिंगों का उल्लेख मिलता है। उनमें यह शिवलिंग आकार और महत्व की दृष्टि से सबसे बड़ा माना गया है।
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🕉️ शिवलिंग की विशेष बनावट
यह त्रिस्तरीय शिवलिंग तीन भागों में विभाजित है –
ऊपरी भाग – भोग पीठ
मध्य भाग – विष्णु पीठ
निचला भाग – ब्रह्म पीठ
रूद्र भाग पर भगवान शिव का चेहरा उकेरा गया है। हालांकि, शिवलिंग में त्रिनेत्र नहीं दिखता, लेकिन जटाजूट, कानों में कुंडल और गले में हार की स्पष्ट आकृतियां उस समय की मूर्तिकला शैली को दर्शाती हैं।
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🔥 कर्ण की चिताभूमि – अद्भुत मान्यता
मंदिर के ठीक सामने पूर्व दिशा में बह रही चांदन नदी के बीचों-बीच दानवीर कर्ण की चिता स्थली है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, महाभारत काल में सूर्यपुत्र कर्ण ने भगवान श्रीकृष्ण से आग्रह किया था कि उनकी चिता ऐसी जगह जलाई जाए, जहां पहले किसी की चिता न जली हो। श्रीकृष्ण ने पूरी पृथ्वी का भ्रमण करने के बाद चांदन नदी के मध्य इस पवित्र स्थल को चुना।
यह स्थल 1995 की भीषण बाढ़ में भी नहीं डूबा था, जिससे इसकी पवित्रता और विशेषता और अधिक प्रकट होती है।
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🕯️ मां दक्षिणेश्वरी काली का मंदिर भी है आकर्षण का केंद्र
जेठौर पहाड़ की चोटी पर स्थित मां दक्षिणेश्वरी काली मंदिर भी इस धार्मिक त्रिकोण का हिस्सा है। शिवलिंग और कर्ण की चिता के दर्शन के बाद श्रद्धालु यहां पूजा करने अवश्य पहुंचते हैं।
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🌿 सावन और शिवरात्रि का विशेष आयोजन
श्रावण मास में सुल्तानगंज की उत्तरवाहिनी गंगा से जल भरकर कांवड़ यात्री यहां जलाभिषेक के लिए आते हैं।
महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां तीन दिवसीय भव्य मेला आयोजित होता है। इस दौरान शिव बारात भी धूमधाम से निकाली जाती है। क्षेत्रीय और दूर-दराज से आए श्रद्धालुओं के लिए विशेष सुविधा प्रबंधन किया जाता है।
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🛣️ कैसे पहुंचें मंदिर?
बांका-अमरपुर मुख्य मार्ग से इंग्लिश मोड़ से पूरब की ओर 5 किमी की दूरी तय करनी होती है।
भागलपुर-हंसडीहा मार्ग से पुनसिया बाजार से पश्चिम दिशा में 10 किमी यात्रा करनी होती है।
दोनों स्थानों से ऑटो और अन्य यात्री वाहन दिनभर उपलब्ध रहते हैं।
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📷 गैलरी में देखें भक्ति की झलकियां
कांवड़ियों की लंबी कतारें
चांदन नदी में क
र्ण की चिताभूमि
पहाड़ी पर मां काली मंदिर की अद्भुत छटा
भव्य शिव बारात की तस्वीरें
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