बिहार के भागलपुर जिले के घोघा प्रखंड में शुक्रवार को घटित एक घटना ने समाज को झकझोर कर रख दिया है। एक तरफ जहाँ बेटी-बचाओ, बेटी-पढ़ाओ की बात होती है, वहीं दूसरी ओर गरीब मजदूर पिता को अपनी बेटी की इज्ज़त बचाने के लिए महाजन से कर्ज लेकर एक लाख रुपये दहेज में देने पर मजबूर होना पड़ा।
फुलकिया निवासी मजदूर की बेटी ज्योति (बदला हुआ नाम) का प्रेम संबंध बैजलपुर निवासी आशीष कुमार से चल रहा था। दोनों को ग्रामीणों ने घोघा के पक्कीसराय में आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया। जब पंचायत बैठी, तो आशीष ने प्रेमिका से रिश्ता तोड़ने की बात कह दी। हालात इतने बिगड़े कि उसने शादी के लिए दहेज की मांग रख दी।
गरीबी और लाचारी में डूबे पिता के पास बेटी की आबरू बचाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा। मजबूरी में उसने महाजन से ब्याज पर एक लाख रुपये उधार लिया और रकम देने के बाद ही आशीष ने शादी के लिए हामी भरी। सत्य कुटीर आश्रम में दोनों की शादी कराई गई।
यह घटना केवल एक परिवार की मजबूरी नहीं, बल्कि समाज के उस काले चेहरे को भी उजागर करती है जहाँ प्रेम को भी सौदेबाज़ी का जरिया बना लिया जाता है। सवाल यह है कि क्या कानूनन अपराध होने के बावजूद ऐसे मामलों में पंचायत और दहेज की प्रथा क्यों हावी रहती है?